धरती माता की उत्पत्ति के बारे में कई पौराणिक कथाएँ हैं।
धरती माता की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी।
समुद्र मंथन के दौरान, भगवान विष्णु ने अपने मत्स्य अवतार में, हिरण्यकश्यपु नामक राक्षस से पृथ्वी और अन्य वस्तुओं को बचाया।
एक अन्य कथा के अनुसार, धरती माता की उत्पत्ति मधु और कैटभ नामक दो दैत्यों के मेद से हुई थी।
मां दुर्गा ने दोनों दैत्यों का वध किया, तब उनके शरीर से निकला मेद सूर्य की गर्मी से सूख गया और उससे धरती का निर्माण हुआ।
एक अन्य कथा के अनुसार, धरती माता की उत्पत्ति भगवान विष्णु के नाभि कमल से हुई थी।
जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में थे, तब उनके नाभि कमल से ब्रह्मा जी उत्पन्न हुए।
ब्रह्मा जी ने धरती माता का निर्माण किया और उसे सभी प्राणियों का निवास स्थान बनाया।
इन सभी कथाओं के आधार पर, यह कहा जा सकता है कि धरती माता की उत्पत्ति एक रहस्यमय घटना थी।
यह एक ऐसा प्राकृतिक चमत्कार था जिसने सभी प्राणियों को जीवन दिया।
धरती माता को हिंदू धर्म में एक देवी के रूप में पूजा जाता है। उन्हें पृथ्वी का जननी और पालनहार माना जाता है।
धरती माता को समृद्धि, उर्वरता और जीवन की देवी के रूप में भी पूजा जाता है।
धरती माता की पूजा करने से सभी प्रकार के कष्टों से छुटकारा मिलता है।
यह सभी प्राणियों को जीवन और समृद्धि प्रदान करती है।
जब मां दुर्गा ने दोनों का संहार किया, तब उनके शरीर से 'मेद' निकला वही सूर्य के तेज से सूख गया।
इसके कारण पृथ्वी को उस समय 'मेदिनी' कहा जाने लगा।
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