इंदौर जिले के गौतमपुरा में दिवाली के दूसरे दिन युद्ध होता है, जिसे हिंगोट युद्ध कहते हैं।
200 साल पुरानी परंपरा इस साल भी निभाई गई। शाम 5 बजे कलंगी और तुर्रा योद्धाओं ने युद्ध लड़ा। इसे देखने के लिए हजारों लोग जुटते हैं।
करीब डेढ़ घंटे तक आसमान से देसी हथगोले बरसते रहे।
डेढ़ घंटे तक चले युद्ध को देखने हजारों दर्शक पहुंचे। गौतमपुरा पूरे भारत में एकमात्र ऐसी जगह है, जहां सिर्फ यह हिंगोट युद्ध खेला जाता है।
वहीं युद्ध के मैदान में सुरक्षा को देखते हुए पुलिस प्रशासन की ओर से 300 से ज्यादा पुलिस के जवान तैनात किए गए थे। साथ ही पुलिस के आला अधिकारी भी मौके पर मौजूद रहे।
इस युद्ध में खेल रहे ज्यादातर योद्धा घायल हो गए। एसडीएम रवि वर्मा ने बताया कि 15 लोगों को मामूली चोटें आई हैं।
ऐसे बनता है हिंगोट युद्ध की तैयारियां दिवाली से करीब दो महीने पहले से शुरू हो जाती हैं। हिंगोट हिंगोरिया के पेड़ का फल है।
नींबू के आकार के इस फल का बाहरी आवरण काफी सख्त होता है। युद्ध के लिए गौतमपुरा निवासी महीनों पहले पेड़ों से हिंगोट तोड़कर इकट्ठा करते हैं
गूदा निकालकर छतों पर सूखने के लिए डाल देते हैं। फिर उसमें बारूद भरकर उसे तैयार करते हैं। हिंगोट को सीधी दिशा में चलाने के लिए हिंगोट में एक पतली बांस की डंडी डालकर
उसे तीर जैसा बना दिया जाता है सुरक्षा के लिए दोनों दलों के योद्धाओं के हाथों में ढाल भी होती है।
मैदान के पास स्थित भगवान देवनारायण मंदिर में माथा टेकने के बाद वे मैदान में आमने-सामने खड़े हो जाते हैं। फिर संकेत मिलते ही युद्ध शुरू कर देते हैं।
हिंगोट युद्ध का इतिहास यह है कि यह गौतमपुरा और रुणजी के लोगों की सदियों पुरानी सांस्कृतिक परंपरा है, जिसे यहां के लोग अपने पूर्वजों की विरासत मानते हैं