होलिका को वरदान प्राप्त था कि आग उसे नहीं जलायेगी। इसलिए होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में प्रवेश कर गई।
लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होलिका उस आग में जलकर राख हो गई और प्रह्लाद बच गया। तभी से होलिका दहन का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है।
इसलिए हर साल होलिका दहन किया जाता है। हालाँकि इसके बाद हिरण्यकश्यप के पापों का घड़ा भी भर गया और भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध कर दिया।
हिरण्यकश्यप: हिरण्यकश्यप नाम का एक राक्षस राजा था जो अत्यंत अहंकारी और भगवान विष्णु का शत्रु था।
प्रह्लाद: हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था।
हिरण्यकश्यप का क्रोध: हिरण्यकश्यप अपने पुत्र की भक्ति से क्रोधित था और उसे मारने की कोशिश करता रहता था।
होलिका का श्राप: होलिका हिरण्यकश्यप की बहन थी, जिसे अग्नि से बचने का वरदान प्राप्त था।
होलिका का षडयंत्र: होलिका ने प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में प्रवेश करने की योजना बनाई।
प्रह्लाद की रक्षा: भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गया और होलिका जलकर भस्म हो गई।
बुराई पर अच्छाई की जीत: यह घटना बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक बन गई।
होलिका दहन: होलिका दहन इस घटना की याद दिलाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
रंगों का त्योहार: अगले दिन रंगों का त्योहार होली मनाया जाता है, जो खुशी और आनंद का प्रतीक है।
धार्मिक और सामाजिक महत्व: होलिका दहन का धार्मिक और सामाजिक महत्व है, जो हमें बुराई का विरोध करने और अच्छाई अपनाने की प्रेरणा देता है।
हिरण्यकश्यप के मरने से पहले ही होलिका रूपी बुराई जल गई थी और भक्त प्रहलाद रूपी अच्छाई बच गई थी।
उसी दिन से भक्त प्रह्लाद की मुक्ति की खुशी में होली जलाने और अगले दिन रंग-गुलाल लगाने की परंपरा शुरू हो गई।